नई दिल्लीः राजनीति की उच्चतम चोटी पर पहुंचकर भी कोई अंदर से किस तरह अकेला रह जाता है, यह भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से पता लगाया जा सकता है. अपने जमाने में कभी फक्कड़पन के नए तराने लिखने वाले वाजपेयी जी को सत्ता की गद्दी पर आते ही उन सभी को पीछे छोड़ना पड़ा. तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल जी को वैसे तो दिल्ली की गलियों में घुमना बेहद पसंद था. लेकिन पद की पाबंदियां ही कुछ ऐसी थीं कि उन्हें मजबूरन अपने मन को समझाना पड़ा.
चांदनी चौक की पराठे वाली गली
पूर्व प्रधानमंत्री के एक सहयोगी ने जब उनसे पूछा कि इस पद पर आपको किस चीज की कमी सबसे ज्यादा महसूस होती है. तो वह फटाक से बोल उठे फक्कड़पन की. चांदनी चौक की पराठे वाली गली में पराठे खाना या शाहजहां रोड़ पर चाट वाले के पास खड़े होकर चाट खाना, ये सब उन्हें पसंद था. लेकिन पद की बंदिशों को तोड़ पाना आसान नहीं था
अपनी पंक्तियों में दर्शाते रहे पीड़ा
वाजपेयी जी के जीवन का सार उनकी कविताओं के माध्यम से समझा जा सकता है. या यूं कहें उनकी कविताएं ही उनके मन की खुली किताब हैं. 'शिखर पर पहुंचकर आदमी अकेला होता जाता है', 'राह कौन सी जाऊं मैं', 'काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं.' ये उनके जीवन की कुछ एक पंक्तियां जिनसे उनके मन की पीड़ा का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है. अपनी सरकार का एक वोट से गिर जाना या जनसंघ के अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन, सभी दुःख उनके लिए समान रहे.
एयरपोर्ट से उतरते ही पहुंच गए थे सिनेमा हॉल
1994 को वो समय था जब अटल जी विदेश यात्रा से लौटे थें, एयरपोर्ट से उतरते ही वे वहां से सीधे सिनेमाहाल पहुंच गए. वहां जाकर उन्होंने अनिल कपूर और मनीषा कोइराल की '1942-ए लव स्टोरी' फिल्म देखी. एक बार तो वह अपने मंत्रीमंडल के सहयोगी के साथ 'कोर्ट मार्शल' नाटक देखने थियेटर भी पहुंच गए थें, उस वक्त अटल जी देश के प्रधानमंत्री थें.
एसडी बर्मन के गानों का बहुत शौक था
अटल जी अक्सर एकांत में ओ रे मांझी..., सुन मेरे बंधु रे..., और मेरे साजन है उस पार... जैसे गीतों को सुना करते थें. पसंदीदा गीतकारों में उन्हें एसडी बर्मन के गाने बहुत पसंद थें. मेला-ठेला और खानपान में रूची रखने वाले अटल जी खिचड़ी बहुत स्वादिष्ट बनाया करते थें.
कभी खिचड़ी के साथ ही आया था राजनीतिक समाधान
एक बार तो खाने की मेज पर रखी खिचड़ी से ही अटल जी और तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के बीच संवाद स्थापित हो सके थें. उसी दौरान गहरे राजनीतिक संकट के समाधान की राह भी बातचीत से ही निकल सकी थीं.
'देश का लोकतंत्र रहना चाहिए'
राजनीति के इस शीर्ष पुरुष के लिए देश हमेशा सर्वोच्च रहा. देश के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले अटल जी ने एक बार सदन में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा था, "सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए." कुछ ऐसे ही थें हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जिनकी 25 दिसंबर 2020 को 96वीं जयंती हैं.